बीकानेर शहर, राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है जो रेगिस्तानी पारिस्थितिकी का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। शहर अब 43.35 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी जनसंख्या लगभग 6.4 लाख (2025) है।
अत्यधिक शुष्क जलवायु के बदौलत इस क्षेत्र में प्रमुख जल स्रोत बहुत कम है। इस लिये बड़े पैमाने पे समय समय पर नहरोंका एक जाल बना दिया गया। श्री गंगा नहर परियोजना जिसको बनाने में छह साल लगे (1921-1927) और इंदिरा गांधी नहर परियोजना 1958 से इसका काम शुरू हुआ जब की पूरी तरह क्रियान्वित 2005 में हुआ उससे थार के रेगिस्तान एवं बीकानेर क्षेत्र में काफी बदलाव आए। इसके साथ ही इस शहर का carcass dump एक अनदेखा पहलू है। जोड़बीड़-गाढवाला — जो न केवल मृत पशुओं का निपटान स्थल है बल्कि पक्षी जैव विविधता का एक विलक्षण केंद्र भी बन गया है।
पारंपरिक स्थल से संरक्षण आरक्षित क्षेत्र तक का सफर

‘जोड़बीड़-गाढवाला’, जिसका अर्थ मारवाड़ी भाषा में ‘कुआं और झाड़ीदार भूमि’ होता है, बीकानेर के दक्षिण-पूर्वी बाहरी क्षेत्र में स्थित है। यहाँ प्रतिदिन 150 टन ठोस अपशिष्ट (solid waste) उत्पन्न होता है, जिनमें से एक छोटा हिस्सा मृत पशुओं के रूप में जोड़बीड़-गाढवाला में डाला जाता है। समय के साथ यह स्थल पक्षी विज्ञानियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक अहम स्थान बन गया है — विशेष रूप से गिद्धों के लिए, जो यहाँ भोजन के लिए आकर्षित होते हैं।
जोड़बीड़-गाढवाला को औपचारिक रूप से एक संरक्षण आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है और यह बीकानेर वन मंडल के प्रशासन में आता है। यहाँ के खुले क्षेत्र, ऊँचे टावर, और उपलब्ध खाद्य स्रोत इसे प्रवासी व निवासी पक्षियों के लिए उपयुक्त आश्रय स्थल बनाते हैं।
गिद्धों की विविधता: संकट और समाधान
यह क्षेत्र सात प्रकार के गिद्धों का घर है:
निवासी गिद्ध:
- भारतीय गिद्ध (Gyps indicus)
- सफेद पृष्ठीय गिद्ध (Gyps bengalensis)
- लाल सिर वाला गिद्ध (Sarcogyps calvus)
- मिस्री या सफ़ेद गिद्ध (Neophron percnopterus ginginianus उपप्रजातिजोएकभारतमेंवर्षभर देखी जाती हैं ) व N. p. percnopterus उपप्रजाति जो यूरोप, अफ्रीका एवं आशिया के कुछ हिस्सों से भारत आती है)
प्रवासी गिद्ध:
- हिमालयन ग्रिफन (Gyps himalayensis)
- ग्रिफन गिद्ध (Gyps fulvus)
- सिनीरियस गिद्ध (Aegypius monachus)
इन गिद्धों के लिए जोड़बीड़-गाढवाला भोजन, विश्राम और प्रजनन का स्थल है, परंतु विद्युत ट्रांसमिशन लाइन जैसे मानवजनित खतरों ने इनकी सुरक्षा को चुनौती दी है, खासकर युवा व किशोर पक्षियों के लिए।
संरक्षण उपाय: नवाचार और भागीदारी

बीकानेर वन विभाग द्वारा जोड़बीड़-गाढवाला में अनेक अभिनव संरक्षण उपाय लागू किए गए हैं:
- फेंसिंग: Aquila प्रजातियों के लिए विशेष बाड़बंद क्षेत्र बनाए गए हैं जिससे मुक्त घूमते श्वानोंसे से उनकी सुरक्षा हो सके।
- श्वान एनिमल बर्थ कण्ट्रोल प्रोग्राम चले
- वॉच टावर व इंटरप्रेटेशन सेंटर: सुरक्षा व पर्यटक अनुभव दोनों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं।
- जल प्रबंधन:
- गज़लर्स (वर्षा जल संचयन हेतु डिजाइन की गई संरचनाएं)
- तश्तरीनुमाजलकुंड (स्वाभाविक रूप से वर्षा जल संग्रह करने वाले गड्ढे)
- गर्मियों में टैंकरों द्वारा जल आपूर्ति
इन संरचनाओं से न केवल वन्य जीवों को जल उपलब्ध होता है बल्कि पारिस्थितिक तंत्र की समग्र स्वास्थ्य भी सुनिश्चित होती है।
जैव विविधता: रेगिस्तान में जीवन

जोड़बीड़-गाढवाला न केवल पक्षियों के लिए बल्कि अन्य रेगिस्तानी जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख जीवों में शामिल हैं:
- सांडा – कांटेदार पूंछ वाला (Uromastyx hardwickii)
- भारतीय व रेगिस्तानी जर्ड (Meriones hurrianae)
- भारतीय खरगोश (Lepus nigricollis)
- लंबे कान वाला हेजहॉग (Hemiechinus auritus)
- भारतीय हेजहॉग (Paraechinus micropus)
वनस्पतियों की बात करें तो यहाँ की प्रमुख प्रजातियाँ हैं:
- Dactyloctenium scindicum (गंठिया घास)
- Aerva javanica (रेगिस्तानी कपास)
- Ziziphus mauritiana (बेर)
- Capparis decidua (केर)
- Leptadenia pyrotechnica (खींप)
हालांकि, आसपास के गांवों से आने वाली पशुओं की अत्यधिक चराई ने घास की ऊँचाई को बहुत कम कर दिया है, जो एक पारिस्थितिकीय चुनौती है।
निष्कर्ष: एक उदाहरणीय मॉडल
जोड़बीड़-गाढवाला एक अनोखा उदाहरण है कि किस प्रकार शहरी अपशिष्ट निपटान स्थल भी सही प्रबंधन से जैव विविधता का संरक्षण स्थल बन सकते हैं। यह जगह न केवल वैज्ञानिक शोध, पक्षी पर्यटन और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करती है, बल्कि देश भर के संरक्षण प्रयासों के लिए एक मॉडल साइट के रूप में उभर रही है।